दैशिक शास्त्र | Bhishma School of Indian Knowledge Systems
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प्राचीन दैवी ज्ञान शास्त्र का अभ्यास किजिये l उसे आत्मसात किजिये l

3 Month Online Certificate Course

दैशिक शास्त्र 

कालावधी - 3 माह
नवरात्री 22 सितंबर से 31 दिसंबर 2025
सप्ताहमें 3 बार - शाम 8pm से 9.15pm

भाषा - हिन्दी

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कालावधी - 3 माह
नवरात्री 22 सितंबर से 31 दिसंबर 2025
सप्ताहमें 3 बार - शाम 8pm से 9.15pm

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परिचयात्मक शुल्क - मात्र रु.1008/- 
(2.5% convenience charges will be applicable) 

Live Classes + Recordings Available

यदा यदा हि ध्यानेन शुभम् चिंतयति मानवः l तदा तदा हि कल्याणम् भवति नैव संशयः ll

भारत के महान स्वतंत्रता सैनानी श्री अरविन्दो घोष के समकालीन श्री सोमबारी जी महाराज भी स्वतंत्रता संग्राम में अपना पूर्ण मनोयोग से योगदान दे रहे थे। श्री सोमबारी जी महाराज के पिता लाहौर न्यायालय में न्यायाधीश थे। क्रांतिकारी विचारधारा का होने के कारण उनके सामाजिक जीवन के संबंध में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। क्रांतिकारी जीवन के बाद उनका अधिकतर समय शिवालिक एवं हिमालय की पर्वता मालाओं में साधना करते हुए व्यतीत हुआ।

सोमबारी जी महाराज के शास्त्रीय ज्ञान एवं तेज में प्रभावित माननीय श्री बाल गंगाधर तिलक ने उनसे दैशिक शास्त्र के संबंध में चर्चा की। चर्चा में आया कि पूर्व कालों में तो दैशिक शास्त्र भारतीय समाज के जन-जन का मार्गदर्शक हुआ करता था, परंतु मैकाले जैसे दुष्टों के द्वारा जब भारतीय ज्ञान परंपरा का गला घोंट दिया गया तो भारत का वह मूल शास्त्र भी विस्मृत हो गया।

तिलक जी के अनुरोध पर सोमवारी जी महाराज ने पुनः लुप्त हो चुके "दैशिकशास्त्र" को प्रकट करने का बीड़ा उठाया। स्वयं व्यास की भूमिका को अंगीकृत कर चुके सोमबारी जी महाराज को अपने गणेश की खोज थी। उनकी यह खोज श्रीमान बद्री शाह ठुलघरिया जी के रूप में समाप्त हुई। सोमबारी जी महाराज कौशिकी नदी के काकड़ी घाट पर "दैशिकशास्त्र" प्रकट करते गए और ठुलघरिया जी लिखते गए। कुल चार खंडों में दैशिक शास्त्र बनकर तैयार हुआ।

किसी भी समाज व जाति के मार्ग दर्शन के लिये कुछ दिव्य गुण सम्पन्न व्यक्तित्व सर्वदा वान्छनीय होते हैं। वो दैविय गुण कौन कौन से होते है और ऐसे गुण सम्पन्न ऋषि-पुत्र समाज में कैसे पैदा किये जायें, दैशिकशास्त्र इसी विषय पर अपना ध्यान केन्द्रित किये हुए है। ऐसे व्यक्ति ही समाज की यथार्थ निधि है। इनका विकास, चयन तथा संरक्षण किसी भी जाति व समाज के लिये अमुल्य है। जीवन को पूर्ण रूप से जीने के लिये चार विभिन्न गुणों की बात की गयी है। इनको हस्तगत करने में कौन जैन सी कठिनाइयों आती हैं तथा उनको कैसे पार कर सकते हैं, दैशिकशास्त्र यहाँ मार्गदर्शन प्रदान करता है।

इस संदर्भ में पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने 1956 में लिखा थाः
"We should study Daishik Shastra very carefully! Because Daishik Shastra is the only book of its kind that presents a lucid explanation of both the hoary and contemporary Bharteeya tenet."

परंतु इस महान उपलब्धि पर फिर अंग्रेज़ों की कुदृष्टि पड़ी और इसके तीन खंड कहीं लुप्त हो गए। दैवीय व्यवस्था में इसका एक मात्र उपलब्ध खंड आज हमारे पास है।

आज से १०० वर्ष से भी अधिक कालखंड पूर्व रची गयी इस पुस्तक की दूरदर्शिता को विशेष रूप से मान दिया जाना चाहिये। इस पुस्तक में, स्वतंत्र भारत कैसा हो, उसके वासी कैसे रहें, कैसे विचार करें, जैसी मूल आवश्यकताओं पर ध्यान दिया गया है, जिससे कि भारत राष्ट्र अपने विश्वगुरु रूप को पुनः प्राप्त कर सके। देशवासियों से निवेदन है कि इस पुस्तक को ध्यानपूर्वक पढ़ें, मनन करें तथा राष्ट्र की सच्ची सेवा हेतु जिस भी या जिन-जिन भी गुणों को अपने चरित्र में उतार सकते हैं, उतारें।

मार्गे बाधाम् हरिष्यामि बाधाम् सन्नाशयामि च दैशिक शास्त्र ज्ञानम् अव नंब्य जीवामि सर्व हिताय च

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विषय बिन्दुः

  1. दैशिकशास्त्र परिचय

  2. सुख की विवेचना

  3. देशभक्ति विभूति

  4. देश राज्य एवं राष्ट्र

  5. जाति, चिति एवं विराट्

  6. दैशिकधर्म

  7. सम्पूर्ण स्वावलंबन

  8. राज्य विभाग

  9. वर्णाश्रम विभाग

  10. अर्थायाम

  11. व्यवस्था-धर्म एवं मंगल मिलन

  12. देशकाल विभाग

  13. योगमय जीवन-आहार-विहार व दैनिक साधना

  14. दैवीसम्पद् एवं आश्रम व्यवस्था

  15. अधिजनन

  16. अध्यापन 

  17. अधिलवन

  18. लोकमत परिष्कार

  19. विराट्-जागरण

  20. एकात्म मानव दर्शन

  21. विश्वशांति मार्ग - वसुधैव कुटुंबकम् वैश्विक प्रार्थना

 कोर्स से शिक्षा आप इस कोर्स से सीखेंगे:

  • दैशिकशास्त्र की महत्ता और इसका वर्तमान स्वरूप जिसमें यह धरोहर हमारे पास उपलब्ध है।

  • समाज को चलाने वाला मूल बल अर्थात् सुख एवं इसके प्रकार तथा मुख को सम्भालना एवं धारण करना

  • देश, जाति, राष्ट्र और वैशिक धर्म की आवश्यकता, पहचान एवं प्रकृतिः बिति एवं बिराट् और इनकी महत्ता

  • स्वतंत्रता एवं इसके विभिन्न स्वरूपः स्वतंत्रता पर पूर्व एवं पश्चिम की विचारधाराएँ

  • राज्य के प्रकार, वर्णाश्रम व्यवस्था एवं अर्थ जगत संचालनः व्यवस्था धर्म एवं देशकाल

  • दैवीसम्पद्, अधिजन्नन, अध्यापन एवं अधिलयन, लोकमत परिष्कार और इनकी क्या महनाः दाम्पत्य जीवन चलाने के मिद्धांत तथा देवी सम्पद्द योगक्षेम एवं विवर्धन

  • एकात्म मानववाद दर्शन परिचयः 'वसुधैव कुटुंबकम्' से विश्वशांति का मार्ग

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About Bhishma School of Indian Knowledge Systems...

Bhishma School of Indian Knowledge Systems conducts Online Certificate Courses based on Ancient Indian Vedic Wisdom, True Indian History, Art, Culture, Literature, Science, Technology, Ancient Civilization. 

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This Course includes... 

  • Live Training on zoom

  • Class Recordings

  • Q & A Sessions

  • Study Material in eBook format

  • Digital Certification By BSIKS

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  • Students across the Globe can Join this Course.

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  • You will receive Class details one day before the date on your email.

  • Amount once paid is not refundable. Can be adjusted in next batch or can be shifted to another course.

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